Shanidham Gaushala Description
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं। साथ ही पंचामृत सहित दूध, दही, घृत से देवताओं को स्थान कराया जाता है। जिससे आध्यात्मिक व भौतिक दोनों अर्थों की सिद्धि मानी जाती है। गौमाता और पंचगव्यों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ही श्री शनिधाम ट्रस्ट ने शनिधाम गौशाला की स्थापना की है। जहां पर वर्षों से हजारों गायों की सेवा की जा रही है।
वास्तव में देश-दुनिया का भ्रमण करते हुए मैंने गौमाता को सड़कों पर घूमते हुए, कूडा-कचरा खाते हुए देखा। बीमार-बेसहारा गायों को देखा तो हदय व्यथित हो उठा। आखिर ये कैसी परिस्थिति है, जहां भगवान श्रीकृष्ण न स्वयं गौमाता की सेवा की, वहां ऐसी स्थिति की कल्पना भी भला कैसे की जा सकती है। गौमता की दुर्दशा से व्यथित होकर अंतत मैंने गौ-वंश की वर्तमान दशा को सुधारने का बीड़ा उठाया। इस महान प्रकल्प के माध्यम से देश भर की वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा करने का संकल्प लिया। गौ-वंश के अस्तित्व की रक्षा हेतु एक परिकल्पना तैयार की और यह परिकल्पना श्री शनिधाम गौशाला के रूप में साकार हुई।
श्री शनिधाम गौशाला जिसका आधार है तन और मन का संपूर्ण समर्पण। इस गौशाला का निर्माण लगभग दो दशक पूर्व हुआ। वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा में समर्पित यह गौशाला पावन भूमि आलावास से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर हिंगावास में स्थित है। श्री शनिधाम गौशाला की स्थापना के समय मैंने प्रण लिया था कि इस परिकल्पना के माध्यम से विशेषकर उन गायों की सेवा की जाएगी, जो दूध नहीं देती हैं। मेरा मानना है कि दूध देने वाली गायों से तो हमारा स्वार्थ जुड़ा हुआ है। अगर हम स्वार्थी बन गए तो वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा कौन करेगा जिस भारत भूमि पर लोग गौमाता के दर्शन कर अपना लोक-परलोक सुधारते हैं, वहां आज ऐसी भयावह स्थिति का सामना करना सहज नहीं है। विषाक्त कूड़े को खाकर जहां कई गाएं असमय काल के गाल में समा जाती हैं, वहीं दुर्घटना में घायल हुई गायों की दुर्दशा देखकर मेरा हदय व्यथा से भर जाता है। इसीलिए श्री शनिधाम ट्रस्ट के सेवादार बंधु जहां कहीं भी गौमाता को कूडा-कचरा खाते देखते हैं, बेसहारा व बीमार गायों को देखते हैं तो उन्हें श्री शनिधाम गौशाला में ले आते हैं। जहां मैं स्वयं अपने हाथों से गौ-सेवा करता हूं। गायों को हरा चारा खिलाता हूं और उन्हें दाना-पानी देता हूॅं। मेरी इसी सेवा भावना का परिणाम है कि आज इस श्री शनिधाम गौशाला में हजारों गाएं स्वच्छंद विचरण करती हैं। इस गौशाला के निर्माण व विस्तार के बाद हजारों गायों को यहां आश्रय मिल रहा है।
मित्रों! हमे हर मौके पर गौ-सेवा के लिए समय निकालना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो गौ-वंश तो समृद्ध होगा ही, हमे भी ऐसे असीम पुण्य की प्राप्ति होगी, जो हमारे कई जन्मों के पापों का प्रक्षालित कर देगी। जिस गौमाता की महिमा इतनी महान है, हमारी समृद्ध परंपराएं एवं संप्रभुता का प्रतीक वहीं गौ-वंश आज बदहाल क्यों है यह एक बडा और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज हमारा देश आपदा, आतंकवाद और अशांति जैसी अनेकों समस्याओं से गुजर रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जहां गाय को मां समान मानकर पूजा की जाती थी, आज वहां की धरती उसके खून से लाल हो रही है। अतः हमें एकजुट होकर गौ-वंश की दुर्दशा के खिलाफ काम करना होगा। यह अटल सत्य है कि यदि हमारे जीवन व संस्कृति के मूल आधार के अस्तित्व पर संकट आया तो ये हमारी स्मिता की बडी हानि होगी। अब वह समय आ चुका है कि इस महायज्ञ में आप भी आहुति दें। गौ-वंश की आराधना करें। अगर हम गौ-वंश की दुर्दशा नहीं सुधार पाए तो गिरिधर गोपाल हमारी किसी सेवा को स्वीकार नहीं करेंगे।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं। साथ ही पंचामृत सहित दूध, दही, घृत से देवताओं को स्थान कराया जाता है। जिससे आध्यात्मिक व भौतिक दोनों अर्थों की सिद्धि मानी जाती है। गौमाता और पंचगव्यों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ही श्री शनिधाम ट्रस्ट ने शनिधाम गौशाला की स्थापना की है। जहां पर वर्षों से हजारों गायों की सेवा की जा रही है।
वास्तव में देश-दुनिया का भ्रमण करते हुए मैंने गौमाता को सड़कों पर घूमते हुए, कूडा-कचरा खाते हुए देखा। बीमार-बेसहारा गायों को देखा तो हदय व्यथित हो उठा। आखिर ये कैसी परिस्थिति है, जहां भगवान श्रीकृष्ण न स्वयं गौमाता की सेवा की, वहां ऐसी स्थिति की कल्पना भी भला कैसे की जा सकती है। गौमता की दुर्दशा से व्यथित होकर अंतत मैंने गौ-वंश की वर्तमान दशा को सुधारने का बीड़ा उठाया। इस महान प्रकल्प के माध्यम से देश भर की वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा करने का संकल्प लिया। गौ-वंश के अस्तित्व की रक्षा हेतु एक परिकल्पना तैयार की और यह परिकल्पना श्री शनिधाम गौशाला के रूप में साकार हुई।
श्री शनिधाम गौशाला जिसका आधार है तन और मन का संपूर्ण समर्पण। इस गौशाला का निर्माण लगभग दो दशक पूर्व हुआ। वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा में समर्पित यह गौशाला पावन भूमि आलावास से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर हिंगावास में स्थित है। श्री शनिधाम गौशाला की स्थापना के समय मैंने प्रण लिया था कि इस परिकल्पना के माध्यम से विशेषकर उन गायों की सेवा की जाएगी, जो दूध नहीं देती हैं। मेरा मानना है कि दूध देने वाली गायों से तो हमारा स्वार्थ जुड़ा हुआ है। अगर हम स्वार्थी बन गए तो वृद्ध, बीमार व बेसहारा गायों की सेवा कौन करेगा जिस भारत भूमि पर लोग गौमाता के दर्शन कर अपना लोक-परलोक सुधारते हैं, वहां आज ऐसी भयावह स्थिति का सामना करना सहज नहीं है। विषाक्त कूड़े को खाकर जहां कई गाएं असमय काल के गाल में समा जाती हैं, वहीं दुर्घटना में घायल हुई गायों की दुर्दशा देखकर मेरा हदय व्यथा से भर जाता है। इसीलिए श्री शनिधाम ट्रस्ट के सेवादार बंधु जहां कहीं भी गौमाता को कूडा-कचरा खाते देखते हैं, बेसहारा व बीमार गायों को देखते हैं तो उन्हें श्री शनिधाम गौशाला में ले आते हैं। जहां मैं स्वयं अपने हाथों से गौ-सेवा करता हूं। गायों को हरा चारा खिलाता हूं और उन्हें दाना-पानी देता हूॅं। मेरी इसी सेवा भावना का परिणाम है कि आज इस श्री शनिधाम गौशाला में हजारों गाएं स्वच्छंद विचरण करती हैं। इस गौशाला के निर्माण व विस्तार के बाद हजारों गायों को यहां आश्रय मिल रहा है।
मित्रों! हमे हर मौके पर गौ-सेवा के लिए समय निकालना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो गौ-वंश तो समृद्ध होगा ही, हमे भी ऐसे असीम पुण्य की प्राप्ति होगी, जो हमारे कई जन्मों के पापों का प्रक्षालित कर देगी। जिस गौमाता की महिमा इतनी महान है, हमारी समृद्ध परंपराएं एवं संप्रभुता का प्रतीक वहीं गौ-वंश आज बदहाल क्यों है यह एक बडा और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज हमारा देश आपदा, आतंकवाद और अशांति जैसी अनेकों समस्याओं से गुजर रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जहां गाय को मां समान मानकर पूजा की जाती थी, आज वहां की धरती उसके खून से लाल हो रही है। अतः हमें एकजुट होकर गौ-वंश की दुर्दशा के खिलाफ काम करना होगा। यह अटल सत्य है कि यदि हमारे जीवन व संस्कृति के मूल आधार के अस्तित्व पर संकट आया तो ये हमारी स्मिता की बडी हानि होगी। अब वह समय आ चुका है कि इस महायज्ञ में आप भी आहुति दें। गौ-वंश की आराधना करें। अगर हम गौ-वंश की दुर्दशा नहीं सुधार पाए तो गिरिधर गोपाल हमारी किसी सेवा को स्वीकार नहीं करेंगे।
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